सोमवार, 23 नवंबर 2015

खुशियां

खुशियां जो कल साथ थी ,
कहाँ खो गईं ,
बिन उनके जिंदगी ,
उदास क्यों हो गई ,
खुशियां जो कल साथ थी ,
कहाँ खो गईं.

सांझी छत पर सूख रहे आम का अचार ,
चुरा कर खाने की ख़ुशी।

मोहल्ले की शादी में ढोलक की थाप पर,
ठुमके लगाने की ख़ुशी।

गुड्डे गुडिओं की शादी में यूँ ही बार बार ,
मेहंदी रचाने की ख़ुशी।

बचपन की वह खुशियाँ,
आज की तारीख में बेमाने हैं,
अब वापस मिलेंगी कैसे ?
यह भगवान ही जाने है।

हर ख़ुशी की उम्र और ,
हर उम्र की खुशियां।
अलग होतीं हैं।

ग़लती मेरी ही थी ,
जो मैं बड़े सुख की तलाश में ,
इधर उधर भटकती रही ,
बीच में आ रही छोटी छोटी ,
खुशियों को नजरंदाज करती रही।

खुशियों को तो खोना ही था ,
अब जो हुआ,
वोह तो होना ही था।

अब हाल यह है ,
कि हर सुख है मेरे जीवन में ,
पर मन को जो सकूँ दे ,
ऐसी ख़ुशी पास नही है ,
निकट भविष्य में मिलेगी ,
ऐसी भी आस नही है।

हर सुख के साथ गर,
छोटी छोटी खुशियों का ,
जश्न मनाती मैँ ,
हर सुख के साथ,
उन खुशियों को भी.
पाती मैं।

आप समझदार हो ,
मेरे जैसी गलती मत करना ,
सुखों की ख़ातिर।,
खुशियों का तिरस्कार मत करना।

अगर खुशियां रुठ गयीं तो,
मुश्किल से ही मनती हैं ,
कभी एक छोटी ख़ुशी ,
बड़े सुख का कारण बनती है।

कभी एक छोटी ख़ुशी ,
बड़े सुख का कारण बनती है।

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