एक प्यार की लौ जलाना जो नफरत मिटा सके,
  जिंदगी से अंधेरों की कुदरत मिटा सके।
  शबनम को हौसला दो अंगारा बनके निकले,
  आसमा  में चमकता सितारा बनके निकले।
  बहारों से कहो कुछ ऐसे फूल खिला दे,
  ग़मो के साये में जो हंसना सिखा दे।
  खामोशियों को आवाज़ दो तूफ़ान उठा दे,
  भटकी हुई हवाओं को रास्ता दिखा दे।
  काँटों को हक़ दो फूलों के संग रह सके,
  गुलशन उजाड़ने वालों की तबियत बदल सके।
  बादलों को पैग़ाम दो नूर बरसाए,
  जमीं पे चाहतों की बारात ले आए।
  साहिल को ज़ोर दो तूफानों के तेवर बदल सके,
  डूब रही किश्तियों की किस्मत बदल सके।
  ……………देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”
मंगलवार, 24 नवंबर 2015
"प्यार की लौ"
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