जब कर्म और फल की प्राचीन परम्परा ने अपना जाल फेंका,
  तो एक रात सरकारी अस्पताल के बाहर फूटपाथ से मैंने चाँद को देखा।
  बादलों की गिरफ्त से छूट कर वह अभी अभी निकला था,
  और पहले से अधिक चमकीला और उजला था।
इससे पहले मैंने कभी उसे ऐसे नहीं माना था,
  बस आकाश में घूमता एक खगोलीय पिंड ही जाना था।
अब चन्द पल मुश्किलों के उसके साथ बांटता हूँ,
  और किसी अपने की सलामती की दुआ मांगता हूँ।
  ……………..देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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