शनिवार, 28 नवंबर 2015

"ना बांटो देश को मेरे"

ना बांटो देश को मेरे, यूँ तुम बदनाम लहज़े में ,
मकां है ये हिन्दू का , ये घर भी है मुस्लिम का |
जो कर रहे शाजिश हमारे सब्र की हद की ,
जो टूटा बांध दरिया का , तो सब उनको डूबा देगा ||

यहाँ हिंदी भी बसती है और उर्दू गीत गाती है ,
मेहदी हरी होकर भी रंग लाल पाती है |
ये मेरे देश की मिटटी की ताकत है मेरे दुश्मन ,
की जितना भी हमे तोड़ो, ये हमको फिर जोड़ जाती है ||

—– > कि ये देश ना असहिष्णु था ना होगा कभी,
ये मुल्क ‘बिस्मिल’ का भी था और था ‘अशफ़ाक़’ का भी

——– कवि कौशिक

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