फिलहाल … (स्वाति नैथानी )
आता जाता दिन
  बुलाता है  मुझे
  चाँद  सूरज वादे
  याद दिलाते हैं मुझे
  फिलहाल सपनों में तैरना है मुझे। 
सच्ची झूठी ख्वाहिश
  खींचती अपनी ओर
  ज़िन्दगी की  दौड़
  पुकारती है मुझे
  फिलहाल लहरों को चखना है मुझे । 
फ़र्ज़ देते आवाज़
  रिश्तों की डोर थामे
  ज़माना देता दुहाई
  सही गलती बनती मेरी परछाई
  फिलहाल हवा से खेलना है मुझे । 

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