रात छोटी सी
  प्रियतम के संग
  बात छोटी सी
बड़ी हो गई
  रिवाजों की दीवार
  खड़ी हो गई
बात छोटी सी
  कलह की वजह
  जात छोटी सी
हरी हो गई
  उन्माद की फसल
  घात होती सी
कड़ी हो गई
  बदलाव की नई
  मात छोटी सी
 बरी हो गई
  रोक तिमिर- रथ
  प्रात छोटी सी
  ………देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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