बुधवार, 25 नवंबर 2015

शायरी

खूब कोशिश कि तुझे कलम मे समेटने कि,
लिखते लिखते ये स्याही अपना असर खोती रही,
जिदंगी जीने के लिए जरूरत थी बहाने की,
बस तु मुस्कुराती रही हमारी बसर होती रही

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