रंग रंगीले,पंख सजीले,
  गाती मीठा गीत,
  मन करता है उसे छू लूं,
  हो गई उससे प्रीत.
जब में उसके निकट आता,
  वह उड़ जाती फुर्र,
  पत्तों की झुरमट में बैठी,
  छेड़े मीठा सुर,
रोज सुबह वह उठ जाती,
  मुँह में दाना लाती,
  घौसले में दो हैं बच्चे,
  उनको खूब चुगती.
दूर गगन में वह उड़ जाती,
  करती रहती सैर,
  उस प्यारी चिडिया का
  नहीं किसी से बैर.
मन करता है चिडिया जैसे ,
  पंख हमारे होते,
  दिन में हम उड़ते रहते,
  रात मजे से सोते .
  ——डॉ उमेश चमोला 

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