आज निकल के घर से बाहर गया,
तो देखा उन दीन-दुखियारो को,
नन्हे हाथो मे खाली कटोरी,
और नयनो से निकलते अश्रु धारो को।
जिन्हे देख हृदय पसीज गया,
मन मेरा बेबस हो गया ,
उनके हाथो के सिक्को को सुन,
आज मैं तो संगीत भूल गया।
जिन्हे देख सहसा मैं ठहरा,
मानो कुछ देर अमीर मैं बन गया,
उन्हे देकर चंद सिक्के मैं,
उनकी दुआओ से गरीब मैं बन गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें