शनिवार, 19 सितंबर 2015

अपनो की दुनिया

सब से जुदा थी वो अपनों की दुनिया थी ,
पहले जिनसे रोज मुलाकात होती थी ,
अब उनसे बस कभी कभी बात होती है ,
पहले माँ की गोद में रात होती थी ,
जब माँ मुझे सुलाने के बाद ही सोती थी ,
सूरज की किरणों से शुभ प्रभात होती थी ,
जब उनके पास थे तो छोटी छोटी बाटे भी उन्हें बताते थे ,
अब दूर है तो आंसुओ को भी उनसे छुपा लेते है ,
उमड़ आया दिल में ये कैसा जज्बात सा है ,
जाने कब मिटेगा , बहुत भयंकर दूरी का ये चक्रवात सा है !!!!!!!!!!!!

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