मंगलवार, 29 सितंबर 2015

रोज़ याद आती है तू - शिशिर "मधुकर"

वैसे तो रोज़ याद आती है तू
दिल में एक दर्द सा दे जाती है तू
लेकिन मैं अपने आप को लेता हूँ संभाल
जब भाग्य में तू नहीं थी तो फिर कैसा मलाल
पर जब से है देखा दो सच्चे प्रेमियों को
नहीं रोक पा रहा हूँ अपनी भावना को
रह रह के मुझको तेरी याद आ रही है
तेरे आगोश की आकांशा मुझे तड़पा रही है
मैं चाह रहा हूँ ये भावना मेरे मन में ना आए
तेरी तड़प अब मुझको और ना तड़पाए
पर शायद नहीं है कुछ भी अब मेरे बस में
सिवाय ग़मों को सहना वो भी हँस हँस के.

शिशिर “मधुकर”

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here रोज़ याद आती है तू - शिशिर "मधुकर"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें