सोमवार, 21 सितंबर 2015

।।ग़ज़ल।।परिन्दे तक भी रोये है ।।

इरादा इश्क़ का था पर निखालिश गम ही पाये है ।।
लुटा दी जिंदगी जिन पर वही मुझको भुलाये है ।।

जहा फेका था खत मेरा वहा से मैं उठा लाया ।।
फ़टे काग़ज़ के टुकड़ो को अभी तक हम संजोये है ।।

तरीके और भी थे दोस्त तेरे इनकार करने के ।।
काँटे क्यों बने दिल के फूल मैंने जो बोये थे ।।

कल तक भूल जाने की कोशिश की थी मैंने भी ।।
मग़र यादों से फ़ुर्सत ही शायद हम न पाये है ।।

अगर फुर्सत तुम्हे हो तो यकीं मानो चले आओ ।।
तुम्हारी याद में कल से परिंदे तक भी रोये है ।।

चले जाना न रोकूँगा दिखाकर रूप अपना तुम ।।
गज़ब की नींद आयेगी रातो भर न सोये है ।।

तनिक भी फ़िक्र मत करना मेरे हालात पर तुम भी ।।
बड़ा आराम मिलता है तभी पलके भिगोये है ।।

.. R.K.M

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ।।ग़ज़ल।।परिन्दे तक भी रोये है ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें