मंगलवार, 22 सितंबर 2015

मेरी प्यारी "बिटियाँ रानी"



जिस दिन तुम
आई थी मेरे अंगना !
घर में उस दिन
छाई थी अलबेली खुशियाँ !
न पूछो तुम,
मेरे दिल का हाल
क्या था …!
उस दिन खुद में,
मै कितना खोया था !
मन प्रफुल्लित
हुआ था ,
गदगद हो उठा था
रोम रोम ….
तन का खिल उठा था !
मिल गयी थी,
नई ऊर्जा…
जैसे शुष्क वृक्ष को !
अंकुरित हुई
नई कपोले फिर से
फूटे थे जैसे
जीवन के नए स्रोत !
मिली थी एक
नई आशा हमे जीने की
जब तुम आई थी
मेरे अंगना
मेरे जीवन की डोर
बनकर मिली थी
मुझे एक नई आशा
आह्लादित
हूँ मैं, जब तक, तुम हो
मेरे जीवन में
बनकर …
मेरी प्यारे सपनो की
हकीकत …
मेरी प्यारी “बिटियाँ रानी” !!

!
डी. के. निवातियाँ !!

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