किस्से कहूँ मैं दर्द अपनी जिंदगानी का
  कौन जाने क्या अंत होगा इस कहानी का
  सपनों को देखना तो बस एक कल की बात है
  ठीक से भी ना सो पाएं कुछ ऐसे हालात हैं
  चारों तरफ केवल मतलबी दुनिया का घेरा है
  नामुमकिन है कह पाना यहाँ कि कौन मेरा है
  आँखों के सामने ही मेरा सुख चैन लुट रहा है
  और बेबसी के मारे मेरा दम सा घुट रहा है
  लुट पिटने के बाद मंज़िल जो मिल भी जाएगी
  खाली वहाँ पर जिंदगी क्या ख़ाक खुशियाँ पाएगी.
शिशिर “मधुकर”
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