मंगलवार, 22 सितंबर 2015

दर्द जिंदगानी का

किस्से कहूँ मैं दर्द अपनी जिंदगानी का
कौन जाने क्या अंत होगा इस कहानी का
सपनों को देखना तो बस एक कल की बात है
ठीक से भी ना सो पाएं कुछ ऐसे हालात हैं
चारों तरफ केवल मतलबी दुनिया का घेरा है
नामुमकिन है कह पाना यहाँ कि कौन मेरा है
आँखों के सामने ही मेरा सुख चैन लुट रहा है
और बेबसी के मारे मेरा दम सा घुट रहा है
लुट पिटने के बाद मंज़िल जो मिल भी जाएगी
खाली वहाँ पर जिंदगी क्या ख़ाक खुशियाँ पाएगी.

शिशिर “मधुकर”

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