वक़्त  ने  एक  दिन  मुझसे  पूछा
  कि  तेरी  खुशियों  का  कमल  कब  खिलेगा
  कैसे  तू  मेरे  साथ  चलेगा 
इस भाग दौड़ की जिंदगी मे तू कब तक लगातार चलता रहेगा
  अपनों की ख़ुशी के लिए तू कब तक पाप कुम्भ भरता रहेगा
  इस  स्वार्थी   दुनिया  से  तू  कैसे  बाहर  निकलेगा
  अब  बता  , कैसे  तू  मेरे  साथ  चलेगा 
तेरे  अपने  ही  तेरे  अरमानो  का गला  भींच   देंगे
  तू  कदम  बढ़ा  के  तो  देख ,वो  पीछे  खींच  लेंगे
  अब तू खुद देख ले कि तू अपनी जगह से  कैसे हिलेगा
  अब  बता  , कैसे  तू  मेरे  साथ  चलेगा 
सुख   की  लालसा  में  तू , मेरे  को  छू   नहीं  पायेगा
  निर्जीव  सा  पड़ा  पथ  पर , दुनिया  की  ठोकर  खायेगा
  और  इन  ठोकरों  के  बीच  तू  कैसे  संभलेगा
  अब  बता  , कैसे  तू  मेरे  साथ  चलेगा 
जीवन  की   अंतिम  बेला  में , कदम  साथ  नहीं  देंगे
  संजोये  थे  जो  सपने , वो  पल  पल  बिखरेंगे
  करोडो  का  मालिक  ये  शरीर , तब  बेमोल  जलेगा
  अब  बता  , कैसे  तू  मेरे  साथ  चलेगा 
मायूस दिल  और आँखों में  आंसू , अब  मैं  निरुत्तर  था
  वक़्त  के  इस  प्रश्न  का  सिर्फ,  ये  ही  मेरा  उत्तर  था
  ये जीवन तो व्यर्थ गया , दूसरा  जनम  भी  तो  मिलेगा
  रख भरोसा ये वक़्त , ये  इंसान फिर कभी तेरे साथ  चलेगा 
हितेश कुमार शर्मा
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