बुधवार, 30 सितंबर 2015

वक़्त का प्रश्न

वक़्त ने एक दिन मुझसे पूछा
कि तेरी खुशियों का कमल कब खिलेगा
कैसे तू मेरे साथ चलेगा

इस भाग दौड़ की जिंदगी मे तू कब तक लगातार चलता रहेगा
अपनों की ख़ुशी के लिए तू कब तक पाप कुम्भ भरता रहेगा
इस स्वार्थी दुनिया से तू कैसे बाहर निकलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

तेरे अपने ही तेरे अरमानो का गला भींच देंगे
तू कदम बढ़ा के तो देख ,वो पीछे खींच लेंगे
अब तू खुद देख ले कि तू अपनी जगह से कैसे हिलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

सुख की लालसा में तू , मेरे को छू नहीं पायेगा
निर्जीव सा पड़ा पथ पर , दुनिया की ठोकर खायेगा
और इन ठोकरों के बीच तू कैसे संभलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

जीवन की अंतिम बेला में , कदम साथ नहीं देंगे
संजोये थे जो सपने , वो पल पल बिखरेंगे
करोडो का मालिक ये शरीर , तब बेमोल जलेगा
अब बता , कैसे तू मेरे साथ चलेगा

मायूस दिल और आँखों में आंसू , अब मैं निरुत्तर था
वक़्त के इस प्रश्न का सिर्फ, ये ही मेरा उत्तर था
ये जीवन तो व्यर्थ गया , दूसरा जनम भी तो मिलेगा
रख भरोसा ये वक़्त , ये इंसान फिर कभी तेरे साथ चलेगा

हितेश कुमार शर्मा

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