बुधवार, 23 सितंबर 2015

ना वक्त बदला ना सोच बदली
ना कोई करिश्मा छाया है
ना दोष घटा ना रोष घटा
ना कोई फरिश्ता आया है
सब चेहरे पर है नकाब लगे
शराफत का चौगा भाया है
खिल उठे है चेहरे सबके
फिर से चुनाव ये आया है
फैलाया है आँचल अपना
समाज के ठेकेदारो ने
जिसने ना दिया कोई टूक कभी
बाँटे है मिठाई हजारो मे
जो ईद का चाँद बना रहता
वो कदम धरा पर लाया है
ईद-उल-फितर नही भाई
फिर से चुनाव ये आया है
सद्भावना प्रकट हुई
सबके मान विचारो मे
पत्थर भी भावुक होने लगे
अब कान लगे दीवारो मे
जिन्हे कदम चौखट पर रखने ना दिया
अब उनको शीश झुकाये है
पानी की एक बूंद ना देई
अब घर पेटी पहुँचाया है
मेल मिलाप अब बढने लगा
भूखे को मिले निवाला है
राजनीति का ज्वर भला
सबके सर चढने वाला है
देश के अच्छे दिन ना सही
गरीबो का दिन आया है
अब भूखा ना सोना पडेगा
फिर से चुनाव ये आया है
अब एक बोतल मे बेचेंगे
वोट के अधिकार को
टुकडो पर जो भागने वाले
क्या समझे इमानो को
नेता को गालिया देना छोडो
सत्ता मे तुमने ही लाया है
अब तो आँख से पट्टी खोलो
फिर से चुनाव ये आया है

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