शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

"आखिर मरा कौन"........ (कहानी )

    1. “आखिर मरा कौन”

      छुट्टी के दिन का आनंद लेते हुए हम आराम फ़रमा रहे थे की अचानक एक मित्र आकर बोले, अरे यार यंहा पड़े ही निठल्ले की तरह कुछ गली मोहल्ले की भी सुध रख लिए करो, हमने कहां अरे भाई जिस काम के लिए पहले से आप जैसी विभूति नियुक्त है, भला उसके लिए फिर औरो की जरुरत कहाँ रह जाती है … !

      अच्छा बताओ और सब ठीक है,….. हमने उनसे हाल पूछा ! अरे काहे के ठीक…… जबाब मिला …. आपको मलूल है अपने मुहल्ले में जो दो युवक गाँव से आये थे रोजी रोटी कमाने !.. सुना है सेठ के घर काम करते हुए दीवार गिरने से दबकर मर गए ! सभी लोग उधर जा रहे है … आप चलते हो क्या ?…. सुनकर बड़ा धक्का लगा …..दिल जैसे धड़कना बंद हो गया था ! क्षण भर के लिए शरीर निर्जीव सा हो गया !… खुद को संभालते हुए हमने कहा, हां दोस्त ! जाना तो अवश्य पड़ेगा I

      हम दोनों जस के तस भीड़ की तरफ चल दिए ! कुछ ही देर में सेठ के घर पहुँच गए ! जाकर देखा जनता जनार्दन का जमावड़ा लगा हुआ था ! तरह तरह की बाते हो रही थी ! कुछ सेठ की लापरवाही का बखान कर रहे थे तो कुछ गरीबो की किस्मत की दुहाई दे रहे थे ! देखते ही देखते भीड़ बढ़ती जा रही थी ! पुलिस भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी थी ! लाशो के निकाल कर अस्पताल भेजने की कार्यवाही की जा रही थी, तभी स्थानीय नेता जी ने अपने लश्कर के साथ चरण कमल यथा स्थान उतारे .. और बड़ी आतुरता से सवाल जबाब करने लगे, ये सब कैसे हुआ ! बहुत बुरा हुआ ! दुःख के साथ शोक सांत्वना जताने लगे , जनता को लगा जैसे कोई अवतार आ गया और मृतकों के परिवारजनो के लिए जरूर कुछ उद्धार कर जाएंगे ! सोचन गलत भी न था वर्तमान युग में नेता किसी अवतार से कम थोड़े होते है , आ जाए तो बिन मौसम बरसात की तरह, नहीं आये तो दर्शनों को वर्षो बीत जाए ! और वैसे भी बरीब, मजदूरो की जिंदगी की डोर तो जैसे इन्ही के हाथो में होती है, ज़रा सी खींची की गले का फांस बन जाए !

      इतने में सेठ का नौकर आया एयर नेताजी को अंदर ले गया ! कुछ देर की मंत्रणा के बाद जब नेता जी बहार आये तो जोश ठंडा नजर आया लगा, मानो सेठ की तिजोरी में स्नान करके शीतलता मिल गयी हो ! अगर बड़ी शालीनता से बोले,… ” भाइयो अभु गुस्से का समय नही हिम्मत और धैर्य से काम लेने का समय हैं, हम सब का पहला कार्य बनता है की मृतकों के शवो का जल्द से जल्द क़ानूनी कार्यवाही कर अंतिम संस्कार किया जाए” उसके पश्चात मृतक के परिवारो के बारे में कुछ सोचते है !

      मै और मेरा दोस्त पूरी तरह से आश्वश्त हो चुके थे की नेताजी, पुलिस और सेठ की तिकड़ी में अब खिचड़ी पाक चुकी है क्योकि जितनी तत्परता से पुलिस ने शवो का पंचनामा कर अस्पताल रवाना किया उतनी तत्परता तो किसी की जान बचाने में भी नही दिखाती ! लोगो का क्या है भेड़-बकरी की तरह अपनी अपनी “मै – मै ” करते है और किसी चरवाहे के डंडे के इशारे पर चलते है ! ठीक वैसे ही नेता जी के इशारे पर कुछ लोग शव के साथ अस्पताल को कुछ कर गए कुछ ने अपना अपना रास्ता पकड़ लिया !

      पीछे पीछे हम भी अस्पताल पहुँच गए, वहा का नजारा अद्भुत था ! जैसा की अवगत हो छुट्टी का दिन होने की वजह से पोस्टमार्टम वाले डाक्टर भी आज छुट्टी पर थे ! चारो और बाते हो रही थी, छुट भैये नेता अपनी नेतागीरी का रॉब दिखा रहे थे, अरे अभी इंतजाम होगा, हम ये कर देंगे, हम वो कर देंगे, जनता जनार्दन टोलियों में इधर उधर कुछ खड़े कुछ जमीन पर बैठे बाट जो रहे थे ! मै और मेरा दोस्त आपस में चर्चा कर रहे थे, की आज गरीब अपनी दयनीय मौत के बाद भी उनके शव अपनी दुर्दशा का इन्तजार कर रहे थे, अगर यही कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति होते तो सब नियम, कायदे, कानून ताक पर रखकर अभी तक सब कार्यवाही पूरी हो चुकी होती ! शायद यही फर्क होता है आम आदमी और ख़ास आदमी में !

      अगले दिन कुछ गिने चुने लोग ही अस्पताल पहुंचे, पोस्टमार्टम करके डाक्टर ने शवो के कर्मचारियों के हवनाले कर चलते बने ! तत्पश्चात जब उनसे शव मांगे गए तो उन्होंने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए, एक ने बड़े शान से रौब दिखाते हुए न्योछावर की मांग की ! जैसे कोई कर्जदार अपना कर्ज वसूली कर रहा हो ! कैसी विकट परिस्थिति थी जहां मरने वाले की दशा दयनीय थी, उस पर कोई जिम्मेदार व्यक्ति उसके परिवार से मौजूद नही था ! उसके ऊपर ये अस्पताल कर्मचारियों की धूर्त मांग, सोचने वाली बात क्या उनको तनख्वाह नही मिलती, फिर क्यों इस तरह की नाजायज मांग करते है ये लोग, मंथन चल रहा था, गरीबी का हवाला देकर उनसे मिन्नते की जा रही थी, मृत शरीर पर भी जैसे कोई कर्ज बाकी था, कोई हल न निकलता देख हमने उनसे बात की और जोर शोर से उन्हें दो चार बाते सुनाने की हिम्मत की और बोला …. कुछ तो शर्म करो ! ये बेचारे गरीब जान से चले गए तुम इनसे भी घूस खाते हो ! बिना किसी कायदे कानून के उनका जबाब था ” ये उपदेश कहीं और जाकर दीजिये साहेब, यहां रोज ऐसे ही आते है …. हमारा तो काम ही मरो की समेट कर देना है, दिन में पांच-सात केस तो रोज आ ही जाते है ! तुम कर के दिखाओ तो जाने…. भाषण देना बड़ा आसान होता हैं ! बड़े लोग अच्छे बुरे हर तरह के काम करके बे हिसाब कमाते है उन्हें कोई उपदेश नही देता ! बल्कि उलट उनके आदेशो का सब पालन करते है ! कल जहां, सेठ, पुलिस, नेता हमदर्दी जाता रहे थे आज सब कहाँ थे !

      आज हमारे पास उनके किसी सवाल का जबाब नही था ! हमने अपनी जेब से दो सौ रूपये निकाल कर उन्हें देने में ही भलाई समझी , उन्होंने बड़ी आतुरता से रूपये लेकर तुरंत शव कपडे में लपेटकर हवाले कर दिए ! शवो को उनके घर ले जाया गया ! चन्द मोहल्ले के लोगो ने चंदा इकठ्ठा कर रस्मो रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया गया !

      चिताएं धूं-धूं कर जल रही थी शोकाकुल परिवार ग़मगीन था और भविष्य की चिन्ताओ में खोया हुआ था ! लोग आपस में बाते कर रहे थे, कितने बेदर्द लोग है … देखो न ! न तो सेठ दिखाई दिया, नेता न कोई पुलिस का कर्मचारी …भाई गरीब का कौन साथी है ! सब पैसे वालो के साथी है ! …. तभी एक युवक बोला .. अरे वो कैसे आएंगे आज सब सेठ के यंहा जमा है … खूब मौज मस्ती …खाना पीना ..सब चल रहा है …..सुना है नेताजी और सेठ में अच्छी सांठ-गांठ है, रही पुलिस की बात वो तो नेताओ के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली है ! मन्दारी के बंदर की तरह जैसे चाहे वैसे नचावे !

      चर्चा करते करते सब शमशान भूमि से अपने – अपने धार को लौट गए, मै और मेरा दोस्त भी अपने घर की और जाते जाते यही विचार करते रहे की आज दुनिया कितनी संवेदनहीन है. मानवीयता तो जैसे लुप्त हो चुकी है ! इस दिखावे की दुनिया में जैसे सब कुछ धता लगता है ! रह रहकर एक ही सवाल जहन में उठ रहा था की आज “आखिर मरा कौन “……! मानव की मानवीयता …………व्यक्ति का व्यतित्व…………इंसान की इंसानियत .या भारतीय संस्कृति जिसका गुणगान सम्पूर्ण विश्व करता है ! सोचते सोचते कब आँखे लग गयी थी पता ही नही चला था !!

      !! इतश्री !!
      *****************
      *****************

      [[ डी. के. निवातियाँ ]]

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here "आखिर मरा कौन"........ (कहानी )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें