टूटे हुए सपनो का दर्द अब और सहा जाता नहीं
  बहते हैं आँखों से आँसु कि कुछ और कहा जाता नहीं
  कोई समझे न समझे जज्बातों को मेरे
  गम ऐ तन्हाई का दर्द मेरा किसी से कहा जाता नहीं
  तोडा है इस कदर किसी ने सपनो को मेरे
  दिल शीशा है कि पत्थर कुछ कहा जाता नहीं
  हमदर्द था वो मेरा या संगदिल कातिल था
  दर्द देके हाल पूछता है कि अब कुछ कहा जाता नही
  ये जानता हुँ कि जिंदगी लाएगी मौत एक दिन
  जीने कि क्या वजह है ये जनता नहीं
  शायद दुनिया में मेरा एक दिन नामो निशा न हो
  हमदर्द है ये दुनिया मैं मानता नहीं
  कैसे भरोसा करे अब किसी के ऐतबार का
  जो रास्ते में छोड़ दे कब मैं जानता नहीं
  फिर भी उनकी यादो से बचकर पास आया हुँ किसी के
  जो ठुकरा दे या अपना ले चाहे क्योकि..
  दिल तो आखिर दिल है कि मानता नहीं ……
मंगलवार, 29 सितंबर 2015
दिल है कि मानता नहीं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें