(१)  ग़म तो मुझे मिलने थे इसमें कौन सी नई बात है
       हश्र यही होता है माटी के पुतलों में जिनके जज्बात हैं
       बेरुखी ये तुमको मगर एक दिन वहाँ ले जाएगी
       चारों तरफ केवल जहाँ जन्नत की खुशबू आएगी
       सब जमीनी रिश्तों से वहाँ तुम अपने को अलग पाओगे
       बन्दे ख़ुदा के मिल ख़ुदा में खुद ख़ुदा हो जाओगे . 
(२).   कोई ऐसा मिल सका न जो हाले दिल को जान ले
         ताउम्र खाए जख्मों के इस दर्द को पहचान ले
         ना दे दवा फिर भी मुझे इस बात का ग़म ना होगा
         बाँटने से दर्द लेकिन हर हाल में कुछ कम तो होगा.
(३).    लड़के सभी से इस जहाँ में अब अकेला हो रहा हूँ
          झूठ पर तामीर हुए रिश्तों की लाशें ढ़ो रहा हूँ
          अंजान हूँ इस सफर में क्या अब कोई साथी मिलेगा
          हाले दिल कह कर जिसे फूलों के माफ़िक चेहरा खिलेगा.
शिशिर “मधुकर”
Read Complete Poem/Kavya Here जख्मों के दर्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें