गुरुवार, 17 सितंबर 2015

ले पुनर्जन्म आओ पुण्यात्मा

बातें करते हैं लोग यहाँ
जीते-मरते रहे लोग यहाँ
निज प्राण दिया परमारथ में
है धर्मवीर कोई और कहाँ

 

गुरुओं का मान रखा जिसने
इस हिन्द की शान रखी जिसने
निज मोह के छोह को त्याग दिया
स्वाभिमान का ज्ञान दिया जिसने

 

बालक के मुख पर तेज़ अपार
दुश्मन भी बैठे थे तैयार
पर गुरु-पिता की सीख थी संग
और तेज बड़ी उसकी तलवार

 

समय के साथ बढ़ा बालक
ली विद्या और बना पालक
सहृदय, प्रेम, त्याग बलिदान
थे गुण उसमें ये विद्यमान

 

तब देश में था बड़ा अत्याचार
पापी ने मचाई थी हाहाकार
कहता था बदल लो ईमान अगर
जीने का मिलेगा तब अधिकार

 

Guru-Tegh-Bahadur-Poem-in-Hindiइससे बढ़कर भी थे कई दुःख
थे लोग भी धर्म से बड़े विमुख
थी नशाखोरी, दुखी था समाज
गुरु-ज्ञान से राह दिखी सम्मुख

बढ़ने लगा हद से जो दुराचार
सृष्टि में निकट थी प्रलय साकार
चिंतित समाज पहुंचा गुरुधाम
मुख से निकला फिर त्राहि-माम

 

ज्ञानवान, व्यवहार कुशल
देख कष्ट जनों के वह थे विकल
बलिदान की ठानी उन ऋषि ने
देख अत्याचार हुए विह्वल

 

बालक उनका भी वीर ही था
all-sikh-gurus-pictureदेख धर्म दशा वो अधीर भी था
कहा, राष्ट्र को देखो पितृ मेरे
तब आँख में सबके नीर ही था.

 

विधर्मी को गढ़ में चुनौती दिया
दिया ‘शीश’ व धर्म की रक्षा किया
जगे लोग तभी, बने वीर सभी
बलिदान के अर्थ को साध लिया

 

हो रहा है धर्म का आज अनादर
आते हो याद फिर राष्ट्र को सादर
ले पुनर्जन्म आओ पुण्यात्मा
एक बार बनो फिर ‘हिन्द की चादर’

– मिथिलेश 'अनभिज्ञ'

Poem on Sikh Guru Teg Bahadur Sahib, in Hindi by Mithilesh. Tegh Bahadur ji.

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