बुधवार, 30 सितंबर 2015

बिटिया

घर से निकलना बेमानी लगता है
जब तक वो ये ना कह दे –
पापा कब आओगे ?
मेरा मुस्कुराना , उसका पैरों से लिपट जाना |
मेरा सहलाना , उसका दुलराना ||
और बार – बार दुहराना कि –
पापा कब आओगे ?
मेरा यूनिफार्म पहनना ,
आधा – अधूरा लगता है
जब तक आँखें मटका कर ,
हाथ नचाकर और लटों को किनारे लगा कर |
बटनों को छुकर ये न कहें कि –
पापा मुझको तो अच्छा लगता हैं ||
मेरा आइना देखना ,
उसका गले से लटकना |
नन्हे -2 हाथो से मेरे लटों को सजाना ,
मेरी चीजें छुपाना और मुझको सताना ||
जो मांगू रुमाल तो मोज़े भी ले आना ,
और मुरझा कर फिर से कहना –
पापा कब आओगे ?
मेरा हेल्मेट पहनना ,
उसका स्ट्रेप लगाना |
गाड़ी की चाबी मेरी उगलियों में फंसना ,
जाने लंगू तो जोर से चिल्लाना ||
मैं बाय करुगी पापा ,
चले मत जाना |
बाल्कनी में खड़े होकर हाथ हिलाना ,
खिलखिलाती बिटिया का उदास हो जाना ||
जब निकल जाऊ दूर तो जोर से चिल्लाना –

पापा पापा $$$$जल्दी $$ आना $$

पापा जल्दी आना ||

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