रविवार, 20 सितंबर 2015

।।ग़ज़ल।।तुम्हे परहेज़ इतना था।।

।।ग़ज़ल।।तुम्हे परहेज़ इतना था ।।

बरसो तक तो तेरी चाहत का क्रेज इतना था ।।
तू ही तू थी तेरी अदाओ का पेज़ इतना था।।

ऐ दोस्त अब आये ही क्यों हो मनाने के लिये ।।
जब मेरी आदतो से तुम्हे परहेज़ इतना था ।।

अश्क तो बहना ही था उस बेहिसाब मुहब्बत में ।।
जब हँसी थी तो मुझसे क्यों गुरेज़ इतना था ।।

ये दिल है तेरी बदलती अदाओ का कोई रुख नही ।।
क्या हो गया तेरे गुरूर का दहेज़ इतना था ।।

आज क्यों हो गया है उदास ये गुलाब सा चेहरा ।।
अभी कल तक तो बेसुमार तेज इतना था ।। ।।

जा अब लौट जा ऐ सितमगर ऐ संगदिल ।।
लिया चाहतो को मैंने भी सहेज इतना था ।।

…R.K.M

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