शनिवार, 26 सितंबर 2015

साथी जैसे दिया और बाती - शिशिर "मधुकर"

अब मेरे मन ने फिर चाहा मिल जाए कोई सुन्दर साथी
साथी हरदम साथ रहे यूँ जैसे रहे दिया और बाती
रखूँगा मैं उसको मस्तक पर सींचूँगा खून से जिंदगानी
लौं से उसकी चमकूँगा मैं अमर हो जाएगी प्रेम कहानी
अगर न होगी लौं उसकी तो मेरा भी अस्तित्व न होगा
प्यार जो उसका न मिल पाया तो मेरा व्यक्तित्व न होगा
अगर रहेंगे साथ हम दोनों तो ऊँचा स्थान मिलेगा
ईश्वर को पूजे जाने का भी हमको सम्मान मिलेगा
अलग रहेगी वो गर मुझसे तो ज्यादा जल ना पाएगी
बिना वफ़ा के ये दुनिया भी आखिर कब तक चल पाएगी.

शिशिर “मधुकर”

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