रविवार, 20 सितंबर 2015

।।ग़ज़ल।।सितमगर मैं दिखाता हूँ।।

।।ग़ज़ल।।सितमगर मैं दिखाता हूँ।।

चलो वीरान बस्ती के सभी घर मैं दिखाता हूँ ।।
रुको तुम साथ शाहिल पर समुन्दर मैं दिखाता हूँ ।।

यहा हैं गम के मारे वे जिन्हें सब कुछ मुअन्सर था ।।
लगा इनके दिलो में जो खंजर मैं दिखाता हूँ ।।

जिनके हाथ है मलहम उन्हें भी घाव है गहरा ।।
छिपी मुस्कान में देखो सितमगर मैं दिखाता हूँ ।।

न राहे है ,न वादे है ,न कोई फर्ज का कायल ।।
न कोई नाम है दिल का वो बंजर मैं दिखाता हूँ ।।

यहा पर लूटने-लुटने की हसरत अब नही होती ।।
तड़पते गम की आहो का मंजर मैं दिखाता हूँ ।।

बड़ी मुद्दत से ही हमदम यहा से बच निकल पाया ।।
इसी हालात के दर्पण अक्सर मैं दिखाता हूँ ।।

R.K.M

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ।।ग़ज़ल।।सितमगर मैं दिखाता हूँ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें