गिर रहें हैं पात देखो , वृक्ष अब रोने लगा है |
  जा रही है रात देखो , चाँद अब रोने लगा है ||
  था लगाया मैंने मरहम , रात को जिस घाव पर ,
  वह पुराना घाव देखो , अब पुन: रिसने लगा है ||
  रह रहा था मौज से , और शान से था घूमता ,
  फुटपाथ पर है आज देखो , अब पुन चलने लगा है ||
  जिस शहर में कल तलक , शांति का बाजार था ,
  बदनाम तबका आज देखो , अब वहां रहने लगा है ||
  श्वान जिनको कल तलक , हड्डियों से प्यार था ,
  आदमी का रक्त देखो , अब वही पीने लगा है ||
  मैंने सुना दर्पण सदा ही , ईमान का है साथ देता ,
  बिम्ब कैसे आज उसमे , धुंधलका दिखने लगा है ||
  रंगीन कपड़े मैं पहनकर , घूमता हूँ जब यहाँ ,
  हर व्यक्ति देखो आज पंकज , ताने पुन: कसने लगा है ||
  आदेश कुमार पंकज
रविवार, 27 सितंबर 2015
ग़ज़ल
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