शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

ये घर बहुत अजीब है ..............

ये घर बहुत अजीब है दोस्तों …
फिर भी दिल के करीब है दोस्तों ..
न ये ईंट गारे से बना
न ये संगमरमर से सजा ..
मगर ये बनता मेरा नसीब है दोस्तों …
दो पैरों की नीव है
दो हाथों के दरवाज़े ..
दो आँखों की खिड़कियां ..
दो कानो के झरोखे …
ये मस्तक है छत जिसका
और धड़ की हैं दीवारें …
ऐसे अनोखे घर में मैं रहती हूँ …
प्यार की बरसात के साथ साथ
दर्द का तूफ़ान भी सहती हूँ …
किरायेदार हूँ ..छोड़कर जाना है …
मगर जाने से पहले ..
एक अंतिम सांस उठाने से पहले …
सत कर्म कर ….
इस घर का किराया चुकाना है ….
इस घर का किराया चुकाना है ….

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