शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

मैं.......................

मैं तेरे साथ चलता रहा …..
जाने क्यों तुझे ये एहसास नहीं …
उलझने आप ही बढ़ाये जा ..
फिर कहना मैं तेरे पास नहीं ..
मुझे ढूंढने निकलता है तू ..
मस्जिद ,मंदिर ,गिरिजाघर ,गुरूद्वारे ….
मैं तो मुस्कुरा लेता हूँ ,
तेरी चाँद नेक साँसों के सहारे …
तेरी बुराइओं को तुझ से जुदा करता हूँ ..
मैं तो खुदा होने की कीमत अदा करता हूँ …
तू मुझे कभी अर्श पर कभी फर्श पर ..
अपनी सहूलियत से ले आता है …..
आता है दर पे शांति की खोज में …
हर बार साथ शौहरत ले जाता है …
सोचता हूँ कोई तो मुझसे पूछ तो ले ….
ज़िन्दगी देने वाले बता ..
मैं कैसे ये ज़िन्दगी जी लूँ..
हँस लूँ कुछ मंज़र देखकर ..
या जी भरकर रो लूँ ..
तू मनमाने ढंग से ज़िन्दगी जीता चला जा रहा …
फिर क्यों हर दर्द पर ..
ए खुदा ..हे भगवान …चिल्ला रहा ..
मुस्कुराकर कभी अपने दिल को टटोल लेना ..
मेरी बात समझ आ जाए ..
तो ये खूबसूरत ज़िन्दगी ….
एक बार को मेरे हिसाब से …
जी कर देख लेना ………………..

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