मुसाफिर  से   मंज़िल  का पता  मत  पूछो  ….
  चलते   हुए   कदमो   से   दुरी   मत   पूछो
  यूँ तो   हासिल   करने   को   आसमान   है   बाकी   …
  हाँ   देर   कितनी   लगेगी  …
  ये   तो   मेरे   यार   मत   पूछो  …
  कहीं   खड़ी  सीढ़ी  नहीं मिलती
  सफलता  हासिल   करने   को  ..
  माथे   पे   पड़ी   टेढ़ी लक़ीरे  ही हैं
  मेरा   मुस्तकबिल   पढ़ने   को  ..
  मैं   डूबा   हुआ   हूँ
  अपने   सपनो   की   गहराई   नापने   को  ..
  आना   न   तुम   प्लीज  ..
  मेरी   तन्हाई   आंकने   को
  गिरकर   मैंने   अपने   आप   को   संभाला   है   कैसे  …
  इस   दर्द   की   दवा   मत   पूछो
  जीत   का   स्वाद   चखने   को
  मैं   हारूँगा   कितनी   बार
  ये   तो   मेरे   यार   मत   पूछो  …
गुरुवार, 17 सितंबर 2015
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