जिस देश मे हमने जन्म लिया
  जिसके अन्न से प्राणवान हुए
  जिसके अमृत सम पानी को
  पीने से हम बलवान हुए
  जिसकी सुगन्धित बयार ने
  तन को सुदृढ बनाया है
  जिसकी निर्मल ममता ने
  ये मनुष्य वृक्ष उगाया है
  वो देश आज अपनी खातिर
  तुमको आज बुलाता है
  ए नौजवा भारत के वीर
  तुमसे वो आस लगाता है
  टूट गई बाहे मेरी
  आँखो मे बहता पानी है
  अब दुश्मन कोई और कहाँ
  मेरे कलेजे की निशानी है
  मै पिता तुम्हारा सबका हूँ
  फिर तुम कैसे अन्जान बने
  सन्तान मेरी ना हिन्दू , मुस्लिम
  बस सच्चे इन्सान बने
  क्यू दिया कलेजा चीर
  मेरा
  जाति मे बंटवारा कर
  कौन पिता खुश रह सकता है
  एक बेटे को दुख देकर
  ए मेरी आँखो के तारो
  तुमसे मे आस लगाता हूँ
  जो ख्वाब मेरी आँखो मे पले
  तुम सबको मे बतलाता हूँ
  चल पडे जिधर दो पग मग मे
  उसी ओर ये संसार चले
  उठे दृग जिस ओर वहाँ
  ना कभी कोई अपराध पले
  निडर रहे मेरी बेटिया
  इज्जत उनकी संसार करे
  ना नामोनिशान हो रिश्वत का
  बस मेहनत से सरकार चले
  भ्रष्टाचार का अन्त हो
  समानता का अधिकार मिले
  हो जाति एक बस मानवता
  प्रेम का सब सम्मान करे
शुक्रवार, 18 सितंबर 2015
देश की आस
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