शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

देश की आस

जिस देश मे हमने जन्म लिया
जिसके अन्न से प्राणवान हुए
जिसके अमृत सम पानी को
पीने से हम बलवान हुए
जिसकी सुगन्धित बयार ने
तन को सुदृढ बनाया है
जिसकी निर्मल ममता ने
ये मनुष्य वृक्ष उगाया है
वो देश आज अपनी खातिर
तुमको आज बुलाता है
ए नौजवा भारत के वीर
तुमसे वो आस लगाता है
टूट गई बाहे मेरी
आँखो मे बहता पानी है
अब दुश्मन कोई और कहाँ
मेरे कलेजे की निशानी है
मै पिता तुम्हारा सबका हूँ
फिर तुम कैसे अन्जान बने
सन्तान मेरी ना हिन्दू , मुस्लिम
बस सच्चे इन्सान बने
क्यू दिया कलेजा चीर
मेरा
जाति मे बंटवारा कर
कौन पिता खुश रह सकता है
एक बेटे को दुख देकर
ए मेरी आँखो के तारो
तुमसे मे आस लगाता हूँ
जो ख्वाब मेरी आँखो मे पले
तुम सबको मे बतलाता हूँ
चल पडे जिधर दो पग मग मे
उसी ओर ये संसार चले
उठे दृग जिस ओर वहाँ
ना कभी कोई अपराध पले
निडर रहे मेरी बेटिया
इज्जत उनकी संसार करे
ना नामोनिशान हो रिश्वत का
बस मेहनत से सरकार चले
भ्रष्टाचार का अन्त हो
समानता का अधिकार मिले
हो जाति एक बस मानवता
प्रेम का सब सम्मान करे

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