वर्ण पिरामिड ।मानवता के प्रति ।
रे
शठ
मनुज !
मानवता
रिस्तों की लाज
टूटती उल्काएं
बिखरता समाज
लो
देखो
धूमिल
प्रदूषित
परम्पराएँ
कलुषता लोभी
दौड़ी मुँह फैलाये
खो
देता
हृदय
कृत्रिमता
पनपे ठूठे
हरियाली ढही
रचते स्वांग झूठे
हो
मत
आहत
उठ जागो
जले मसाल
नव जागरण
फैले ज्योति विशाल
दो
त्याग
मुखौटे
प्रलोभन
सच्चा दर्पण
झलके संसार
है प्रेम, समर्पण
@राम केश मिश्र
Read Complete Poem/Kavya Here Varn Piramid वर्ण पिरामिड ।मानवता के प्रति ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें