साथ के बिस्तर पर पापा सोए थे,
और रात के तीसरे पहर उसकी याद आ गई,
मैं करबटें बदलने लगा और सोचने लगा l
यह मुझे क्या हो गया ——
शायद मेरी करबटों ने-
उनकी नींद में ख़लल डाला हो,
कि अकस्मात् रौशनी हुई और पूछाः
क्यों बरखुरदार ! नींद नहीं आ रही,
या कही खो गया l
यह मुझे क्या हो गया ——
ऐसा व्यंग था उनके प्रश्न में
कि नजरें झुक गई,
अल्फाज़ नहीं थे मेरे पास जो कह पाता !
कि पापा ! जो शख्स यहाँ सोया है,
मुकम्मल नहीं, आधा है अधुरा है l
मात्र इतना ही कहा की पेट में दर्द है l
पहली मर्तबा झूठ बोला था,
आँखे नम हो गई और दिल रो गया ll
यह मुझे क्या हो गया ——
नम आँखों को देख,
वो झट से पानी गर्म कर हाजमोला लाए l
मगर मैं बेशर्म ! क्या जानू उनके प्यार को,
मैने हाजमोला खाया चटकारा लगाया l
और फिर उन्हीं सपनों में खो गया ll
यह मुझे क्या हो गया ——
संजीव कालिया
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