“झुकी-झुकी सी नज़र”
झुकी झुकी सी नज़र में कोई शरारत है ये प्यार का न भरम है यही इबादत है तुम्हारी इन अदाओं पे हैं लाखों कुरबां जो मार डाले ज़माने को वो शराफत है शकुंतला तरार रायपुर (छत्तीसगढ़)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें