शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

उपेक्षित बालक की व्यथा .....

गरीबी से तो मै लड़ सकता था मगर
धर्म और समाज के हाथो मारा गया !
न था अफ़सोस अपनी साधनहीनता का
मै आहत हूँ कि जाति नाम पे नकारा गया !
पहले उछाला मेरे नाम को गाली के नाम से
फिर राजनितिक रंग में उसको उतारा गया !
क्या थी कमी मुझमें, सबके जैसा इंसान था
फिर क्यों मुझे बदरंग कहके दुत्कारा गया !
मैंने भी लगाई है खून कि बांज़ी वतन पर
फिर क्यों मुझे बुरी नजर से वारा गया !
मैंने भी खूब सींचा इस पावन धारा को
खून पसीना मेरे द्वारा भी बहाया गया !
जिस्म ओ जान मेरी भी उस रब कि इनायत
फिर क्यों मुझे मंदिरो के दर से उतारा गया !
आज भी खड़ा हूँ जिंदगी के उसी मोड़ पर
जहां से था मुझे विशेष श्रेणी में डाला गया !
यूँ तो हक़ के लिए लड़ते है रोज़ कई तबके
पर उन्हें न कभी भी नजरो से गिराया गया !
न जाने क्या कमी रह गयी थी मेरे कर्म में
जो मुझे ही बेगैरती के नक्श में ढाला गया !
कुछ तो बता दो मेरा दोष ऐ दुनिया के ठेकेदारो
क्यों अभी तक नही मानवीयता से स्वीकारा गया !
गरीबी से तो मै लड़ सकता था मगर
धर्म और समाज के हाथो मारा गया….!!
!
!
!
डी. के. निवातियां…………….!!!

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