सोमवार, 14 मार्च 2016

नारी की आवाज

( नारी की आवाज…..)

हम महिला है, पर अबला नहीं ,
अब चैन से हमको जीने दो मत डराओ,मत धमकाओ,
अब साँस हमे तुम लेने दो

देखा हमने बहुत चारदीवारी में जी कर ,
परदे में हम रहे हमेशा,सब्र का घूँट पीकर
अब तो वक्त बदलने दो ,चारदीवारी से निकलें हम ,
हमे खुले आकाश में जीने दो ,

मत डराओ,मत धमकाओ
अब साँस हमे तुम लेने दो.

सतयुग में था एक ही रावण ,कलयुग में गिनती ही नहीं
समय बदला, पर लोग नहीं
नारी ने हमेशा जिल्लत है, सही

हाड मॉस का शरीर नहीं ,समझो हमको एक इंसान,
अपनी हवस मिटाने को मत करो इतना अपमान,
मत मसलो नन्ही कलियों को,उनको भी तो खिलने दो,
अब तो बदलो तुम ,हैवानो,
नारी को अब जीने दो

मत डराओ,मत धमकाओ
अब साँस हमे तुम लेने दो,

हम भी देखे, जग कितना है सुन्दर
नीला आकाश,भरा समुन्दर
हमको भी सपने, बुनने दो ,
खुली हवा में हम भी घूमे,
हमे भी आकाश छूने दो ,
मत डराओ ,मत धमकाओ
अब साँस हमे तुम लेने दो ,,,,,,,,,,

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