हर राष्ट्रवादी रों पड़ा,
  उन छात्रों के काले करतूतों से,
  हर भारतीय शर्म से पानी हुआ,
  उन देशद्रोह के नारों से ।
देश का नमक खा कर भी तुम,
  देश के टुकड़े चाहते हो,
  अगर "अफज़ल” को आदर्श मानते हो
  तो "कलाम” के देश के क्यों रहेते हो ।
दोगलेपन की दहलीज़ पे खड़े रहकर,
  समानता की बातें करते हो,
  जिस संविधान से आतंकियों को सज़ा मिली,
  उस महामहिम को चुनौती देते हो ।
अलगाववाद के राग आलापते रहेंगे,
  अभिव्यक्ति के नाम पे,
  गरीबों के ठेकेदार बनते रहेंगे,
  आज़ादी के नाम पे ।
समाजवाद के नाम पे सिर्फ सत्ता की रोटियाँ शेकना आता है,
  पर भारत में तो समाजवाद राष्ट्रवाद क दुश्मन बन जाता है ।
  इस गद्दार गिरोह ने तो सब्र की सीमाएँ लाँघ दी,
  जब सेना के जवानों की बलात्कारियो से तुलना की ।
वीरों की विजयगाथा की जगह,
  कायरों की वाहवाही होती है यहाँ,
  शहीदों के सम्मान की जगह,
  जयचंदो की जयकार होती है यहाँ ।
अगर "वंदे मातरम्” बोलने में विचारधारा बिच में आती है,
  तो खून की जाँच करवालो अपने, क्योंकि खून नहीं वो पानी है ।
  अब ऐसी परिस्थितियों में भी अगर खून तुम्हारा नही खौला,
  तो समज लेना के खून में तुम्हारे देशप्रेम का एक कतरा भी नही बचा ।

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