चंद्रशेखर आजाद जी की पुण्य तिथि पर आजाद जी को पुकारती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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आजाद ही आजाद थे ना कोई अब आजाद है
  उजडा है सेनानी का घर और दुष्ट का आबाद है 
अब युवा भी लालचो की लार में लिपटे सभी
  और  पीकर  मैकदे  में  मूत्र  को  बर्बाद  हैं 
भारती माँ आज है जंजीर में जकडी हुई
  हो रहा आतंकियों से प्यार का संवाद है 
आज़ाद ना हैं बेटियाँ भी मर रहीं हैं कोख में
  पर सभी को आशिकी का वो ज़माना याद है 
आज़ाद ना माँ धेनु है सब खा रहे हैं बीफ को
  आदमी भोला था जो अब बन रहा जल्लाद है 
गूँज बर्बादी की अब उठती है हर इक शहर से
  गोरियों जयचंद की अब बढ़ रही तादाद है 
जिस तरह तुमको छला था नेहरु की इक चाल ने
  उस तरह का आज भी फैला ये नीतिबाद है 
आग आरक्षण की है ये अब जलाती रूह को
  फैली है लोकतंत्र में घटिया ये जातिवाद है 
आज के दिन गोधरा में थी जली इंसानियत
  उस तरह की शांति का अब हर जगह अपवाद है 
खास जाति धर्म का ही  हो रहा उत्थान अब
  कैसी है धर्मनिरपेक्षता कैसा समाजवाद है 
“देव” तुमको अब पुकारे फिर से आओ चंद्र जी
  काबिले ना अब भरोसे कलियुगी औलाद है 
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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