तत्कालीन परस्थितियो पर मौजूदा सरकारों तथा सोये हिन्दुओं पर कटाक्ष करती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार–कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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शिक्षा का मन्दिर बनता यहाँ आँगन पाकिस्तान का
किस मुख से गुणगान करूँ मैं जलते हिंदुस्तान का
लगता अब भी धूल सनी है दरबारों के दर्पण में
तुष्टिकरण में देशद्रोह के बैठे सभी समर्पण में
जिन हंसो को पाला है अब वो भी गू को खाते हैं
सैनिक-लाशों पर चढ़कर आतंकी के गुण गाते हैं
गली गली में इशरत के वालिद पैदा हो जाते हैं
जेहादी लाशों को सब मिल माला-फूल चढाते हैं
ना जमीर जिन्दा लगता अब भारत के इंसान का
किस मुख से गुणगान करूँ मैं जलते हिन्दुस्तान का
अफजल से लेकर अजमल और इशरत से लेकर मेनन
कुंठित मानवता होती है भारत माँ का जलता तन
जान दाँव पर लगा के ही आतंकी पकड़े जाते हैं
तुष्टिकरण के दल्ले फिर भी उन्हें बचाने आते हैं
पहले तो बस पहरोकारी औलादें थीं मीम की
आज कलंकी कुछ औलादें आगे आईं भीम की
भीम का सर झुकवाया है और मान गिरा सम्मान का
किस मुख से गुणगान करूँ मैं जलते हिन्दुस्तान का
गौरक्षक यदुवंशी भी अब गऊ भक्षक को पाल रहे
ख़ुदगर्जी में मोंमिन की गलियों में डेरा डाल रहे
“डायन” कहने वाले “दुष्टों” पर बन रहे रहनुमा सब
मन्दिर और मस्जिद के मुद्दे पर बन रहे मुसलमां सब
सब के सब ही लालायित हैं पाकिस्तां से भेंट को
बनके बिच्छू कुतर रहे सब भारत माँ के पेट को
खलनायक ने मजाक उडाया वीरों के बलिदान का
किस मुख से गुणगान करूँ मैं जलते हिन्दुस्तान का
लोकतंत्र के मन्दिर पर जिसने गजनी बन वार किया
उस कठमुल्ले के प्यादो से अब है सबने प्यार किया
देशद्रोह की बू आती है इन प्यादों के नारों में
भूल ज्ञान गीता के सब ही उलझे है व्यभिचारों में
“भारत माँ” के टुकड़े होते हैं आतंकी शिविरों में
हिम जैसी ठंडक छाई है लगता सबके रूधिरों में
लगता अब हर रूह ने ओढा झण्डा पाकिस्तान का
किस मुख से गुणगान ———
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