सोमवार, 14 मार्च 2016

हर ग़म पी के मुस्कुरा |ग़ज़ल|

तड़प के जी ले मगर बेवफ़ा को मुकद्दर न बना |
हर ग़म पी के मुस्कुरा दिल को पत्थर न बना |

निगाहें शौक से किसी को अब देखा न कर |
कोरे दिल में किसी का फ़िर से तस्वीर न बना |

माना जीवन का डगर है कठिन उनके बिन यहाँ |
न रह गुमशुम ए दिल ग़म को हमसफ़र न बना |

दिखा उसे अमिट है प्यार की बंधन जहा में |
ज़िंदगी है प्रेम की नदी इसे तू ज़हर न बना |

ये दिल तेरे साथ जो हुआ उसे भूल भी जा |
ज़िंदगी है फूलों की राह उसे कांटो का डगर न बना |

तूने देख लिया क्या मिला उस बेवफ़ा के प्यार से |
जहाँ न हो कोई अपना उसे ज़िंदगी का शहर न बना |
Dushyant kumar patel **-

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