मंगलवार, 15 मार्च 2016

माँ

———माँ ————

माँ ही दाती है सुखों की माँ ही दवा है दुखों की माँ के प्यार में जहाँ की खुशियाँ अपार हैं
घर की है शान माँ ही घर का है प्राण माँ ही बिन माँ के सूना सबका ही घर द्वार है
खुद भूखी रहके भी परिवार पाले माँ ही दुख ना दो माँ कॊ माँ ही स्वर्ग का संसार है
फ़िर भी कपूत कुछ भेजें माँ कॊ वृद्धागार ऐसे कपूतो का जिन्दा रहना ही बेकार है

कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080

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