रविवार, 6 मार्च 2016

maa

– माँ

कभी नदी सी विशाल ह्रदय की ,कभी धरती सी सहनशील,
ममता का भंडार है, माँ ,
रचा उसे ईश्वर ने ऐसे धरती पर जैसे स्वर्ग है ,माँ

दर्द छुपा कर मन के अंदर सहज भाव दर्शाती, माँ
करके सहन वो हर एक पीड़ा ,
बच्चों को हर्षाती ,माँ

कभी रिमझिम बारिश की बूंदों सी ,बरसाती है प्यार ,माँ
कड़ी धुप में चाय बनकर ,आँचल अपना फैलाती ,माँ

कभी पर्वत सी कठोर बनकर ,विपदाओं से बचाती, माँ
कभी पवन के मंद वेग सी ,मंद मंद मुस्काती, माँ

प्रकृति का हर रूप है उसमे ,ईश्वर का वरदान है ,माँ
चार धाम है गोद में उसके ,सबका तीर्थ स्थान है, माँ
रचा उसे ईश्वर ने ऐसे ,धरती पर जैसे स्वर्ग है ,माँ

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