तराइन का मैदान था
  गौरी सम्मुख चौहान था
  एक तरफ सिर्फ  छल था
  दूसरी तरफ सिर्फ बल था
  छल को तो  जितना था
  सो छल जीत गया
  छल के सम्मुख
  बल को तो हारना था
  सो बल हार गया
  चौहान राज्यहीन हुआ
  और गौरी श्रीहीन हुआ
  लेकिन गजनी का
  तमाशा अभी बाकि था
  चौहान के जीवन में लिखा हुआ
  भाग्य का पाशा अभी बाकि था
  चौहान के युद्ध कौशल का
  गवाह बना बरदाई था
  राजपुताना खून था वो
  न पानी था न स्याही था
  गौरी का सिंहासन
  गजनी की शान था
  लेकिन चौहान की आन
  उसका धनुष बाण था
  बंदी रहकर भी उसने अपनी
  आन पे आंच न आने दिया
  गौरी का सीना छलनी कर
  अपने प्रण को पूरा किया
  आज भी उसकी वीरता
  एक अमिट कहानी है
  उसकी वीरता को नमन है
  यही हर भारतीय की वाणी है
रविवार, 20 मार्च 2016
पृथ्वी राज चौहान
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