जलता हिंदुस्तान देखकर
  आँखे आज हुईं हैं नम
  घड़ी कठिन भारी है और
  पारस्थितियाँ भी हुईं विषम 
                      कहीँ पे गंगा मैली होती
                        कहीँ पे गाय तोड़ती दम
                        कहीँ तिरंगा जलता है
                        कहीँ आरक्षण का है दमखम 
समय है अब शमशीरो का
  फिर क्यों बैठे बुद्धम शरणम
  अब आओ राणा के वंशज
  सब मिलकर आज दिखाएँ दम 
                     मानवता के हत्यारों और
                       अफजल गैंग को करें ख़तम
                       फ़िर मिलकर भारत माँ के
                       चरणों में शीश झुकाएँ हम 
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
  9675426080

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