ज़िन्दगी ऐसी हो गई है इंसान की यहाँ |
  जरुरत ही नहीं लगती श्मशान की यहाँ ||
नुमाइशों के लिये हैं ये मंदिर – मस्जिद ,
  मन में नहीं है मूरत भगवान की यहाँ |
आपस में ही लड़ते हैं परिवार के सभी ,
  जरुरत ही नहीं पड़ती अन्जान की यहाँ |
जिसे ये पालकर भेजता है कत्लखानों में
  चीखें सुनेगा कौन उस बेजुबान की यहाँ |
ज़िन्दगी ऐसी हो गई है इंसान की यहाँ |
  जरुरत ही नहीं लगती श्मशान की यहाँ ||
-padam shree
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