रविवार, 22 नवंबर 2015

खुशबु माटी की...........!

बरसात मे जब पहली बौछार पङी तब आई खुशबु माटी की………!

आँगन खेत खलियान सब भीग गए ,छाई खुशबु माटी की………!

माटी नही ये सोना है,ये किसान का गहना है !

बरखा आई साथ लाई, खुशबु माटी की…….!

माटी ने ही हमे बनाया, माटी मे ही जाना है !

माटी का ही तिलक हमे ,माथे पर लगाना है ……!

फिर क्यो दूर हुए इस माटी से ,
क्यो याद न आइ खुशबु माटी की……….!

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