उदास …. ( मुक्तक )
छत पर बैठी सांवल गोरी, लिए मन उदास, जिंदगी नीरस लगी छोड़ी जीने की आस ! कलयुग में नर से सहती हर पल अत्याचार , आबरू कैसे बचे, उपाय बचा न कोई पास !! ! ! ! डी. के. निवातियाँ …………!!
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