गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

जाग मेरे देश के नौजवान.............

ये किसकी नजर लगी मेरे वतन को
किस राह पे आज नौजवान चल पड़ा
भूलकर सत्य असत्य के मध्य का भेद
लकीर का फ़कीर बन आँखमूँद चल पड़ा !!

उन्नति और विकास की गुलामी के
हाथो इस तरह से अब जकड़ा गया
स्वंय के पल्लू में कुछ शेष रहा नही
सर्वस्व मशीनो के हवाले करता गया !!

ज्ञान का भण्डार लेकर भी
आज अपने में असहाय लगता है
बना डाले अद्भुत अक्षम्य यंत्र
अब खुद उनके आगे रोबोट लगता है !!

कर शिक्षा ग्रहण सर्वोत्तम
कार्य असभ्य असंगत करने लगा
लेकर अधिकारों का शस्त्र
उपद्रव और आत्मदाह जैसे अपराध करने लगा !!

कैसे भूल गया महत्पूर्ण बात
अधिकार पाने है तो कर्तव्य भी जरुरी है
चाह रख मीठा फल पाने की
मगर उसके लिए सुकर्म करना भी जरुरी है !!

रख हिम्मत कुछ करने की
इतना जल्दी क्यों तू घबराने लगा है
जज्बा अगर सकारात्मक है,
देर से ही सही मंजिल तो पाने लगा है !!

पहचान अपनी ताकत को
इस्तेमाल ठीक से इसका तुझे करना होगा
आश लगाये बैठा बीता बूढ़ा कल,
आने वाले कल का चालाक तुझको बनना होगा !!

एक बार उन नजरो से देख
भारत माता ने तुझसे कितनी उम्मीद लगाईं
सम्पूर्ण जग के तुम मालिक हो
अगर एक हुंकार जो तुमने हिम्मत से लगाईं !!

तुम हो भविष्य हो कल का
अपने घर, परिवार, अपने वतन का
पहचान शैतान की चाल को
मंडरा रहा खतरा मातृभूमि के हरण का !!

चन्द पैसो की खातिर
क्यों अपने अस्तित्व को तू गँवा रहा
जाग मेरे देश के नौजवान,
खाकी, खादी, के चक्कर में पड क्यों भरमा रहा !!
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डी. के. निवातियां………………

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