शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

कविता-"थानागुड़ी में"-शकुंतला तरार

बस्तर पर कविता
”थानागुड़ी में”
चहल-पहल है
आज
थानागुड़ी में
साहब जी आ रहे हैं
रात यहीं विश्राम करेंगे
नए-नए हैं
तबादले पर आये हैं
वे !
सुनते थे
यहाँ आने से पहले
कि बस्तर के लोग ,
गाँव,
जंगल,
आदिवासी,
ऐसे?
वैसे?
और अब आना हुआ है
तो ऐसा सुनहरा मौका
क्यों चूका जाय
साहब
भीतर ही भीतर बहुत खुश हैं
मातहतों के चेहरे
घबराहट में
आखिर साहब तो साहब हैं
जल्दी से पीने का
और
साथ में मुर्गे का भी करना है
इंतजाम
क्या करें
अचानक साहब का दौरा जो तय हो गया
अब तो रात में घोटुल से
चेलिक-मोटियारिन आयेंगे
रीलो गाकर
नाचकर
साहब को प्रसन्न करेंगे
और साहब
अपने ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे का समय
सानंद बिताकर
वापस लौट जायेंगे
शहर मुख्यालय की ओर
आने के लिए
पुनः पुनः |( ”मेरा अपना बस्तर ” काव्य संग्रह से )

शकुंतला तरार रायपुर (छ.ग.)

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