गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

कैरी.......खट्टी मीठी बातें !

सारे नन्हे कदम निकले
लेकर अपना कलम और किताब
भूगोल विज्ञान भाषा
सीखा दो दूनी चार और कितने हिसाब !
फिर चली यह किलकारियाँ छुपते छुपाते
बंद मुट्ठियों में लेकर सपने हजार
खेतों की पगडंडी कभी झील का किनारा
मेहनत की बोली पे लगा अरमानों का बाजार !

हाथ आए कुछ कच्चे हरे मेहमान
साथ में रही नमक मिर्च की पुडीया
स्वाद लेते रहे हर खटास का
के मिठास भरने आई कुछ नन्ही परियाँ !
झूला झुलाया, खेली आँख मिचोली
यारी दोस्ती और लडना भी सिखाया
बचपन यह कैरी के जैसा
खट्टी-मीठी बातों से हँसना भी सिखाया !

गली मोहल्ला बढने लगा
इन्सान चलना कम, चलाने लगा
खिडकियों देखा सारा जहाँ
पर पडोसी से अन्जान रहने लगा !
घर के हर कोने में मेंहगा सामान
दीवारों की कीलों में तस्वीरों की दुकान
यादों को याद किया, फिर भुला दिया
अधूरेपन में उलझा हर अरमान !

इस सूनेपन को सुलझाने
फिर चला पैर थकाने को
गीली मिट्टी की खुशबु में
फिर बचपन चुकाने को !
सुकून की कुछ घडियाँ मिली
आँखों की नमी गवाह बन जाती है
यह जिंदगी कैरी जैसी
खट्टी मीठी यादों से जीना सिखाती है !

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