गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

एक Cup Chai ....

खुल गई आँखों कि चादर से
गहरे नींदों की सुस्तियाँ ।
कदमों पे होसला बुनते
लिए जातीं हुँ दिन की अँगडाइयाँ !

जिम्मेदारी के सिरहाने है कितनी मन्जिलें
हर सवेरा लिखता है यह किस्सा सुहाना ।
तकदीरों से बोलूँ तकलीफें छुपाले
घडी कि हर पहर से है रिश्ता पुराना !

मेहकी हुँ, बहकी हुँ कितनी दफा
कितनी ही कोशिशें रह गई बेजुबान ।
फरयादों कि मेहफिल में कदम मिलाए
यादों की उलझनें बेशुमार !

सवेरा भी चल पडा सबके सफर में
मेहनत की डोरियों से ख्वाब जुडने लगे ।
फिर कहीं कुछ साँसें थमने लगी
जैसे खयालों से एतबार करने लगे !

कहीं चाशनी का घोल है
कहीं अदरकी, तो कहीं कडक इतिहास है ।
हर घूँट में है सुकून की चुस्कियाँ
यह एक Cup Chai, एक अनगिनत एहसास है !!

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here एक Cup Chai ....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें