रविवार, 31 मई 2015

चमचागीरी-70

कभी ढूंढना नहीं पड़ता ,हर जगह मिलते हैं, हर जगह चमचों का समूह है;
कब तक लड़ेगा अकेला अभिमन्यु, जब हर जगह चमचागीरी का चक्रव्यूह है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-70

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें